तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है
हमने दुनियाँ से अलग गाँव बसा रखा है…🎼
अतीत के उन गलियारों में कितने ही रंग बिखरे पड़े हैं
आसमान का चम्पई रंग,उगते सूरज का सिन्दूरी रंग, प्रेम का रंग,मौसम का रंग उम्मीदों का रंग, अहसास का रंग और प्रीत का लाल रंग
यादों के स्याह रंगों से घिर कर धूमिल होते रंगों को स्पर्श करने पर….
एक तस्वीर हाथ मे आ जाती है
एक आह!..एक अधूरा ख़्वाब..ख़ालीपन
पतझड़ का रंग शाख से टूटें फूलों का रंग.. और बिछुड़न का रंग.. क्या तुमने कभी सोचा था तुम मुझे बेरंग कर दोगे..
क्या तुम्हारा मन भी खारा नही हो जाता होगा कभी-कभी..
मैं भी कितना कोसती हूँ तुम्हे…स्वाति की एक बूंद पाकर सीप में मोती बन जाते हैं…
मुझे तृप्त हो जाना था तुम्हारे एक बूंद के प्रेम में ही
माटी की नश्वर देह, नश्वर कामनाएं..
देखो, मैं आज भी वहीं रुकी हूँ…
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